लाम्बा की शायरी
तेरी याद आने से मेरे जख्म हरे हो जाते है । वही पुराने दर्द उभर कर उपर आते है॥ लाम्बा हमने उसके इतने भाव बढा दिये। पता नही क्या हुआ उसने,अपने घटा दिये ॥ मै चाहता था उसको एक हजार लाख मे। वो बिकना चाहिती थी मेरे कदमो की खाक मे॥ उसने जो तहरीर बताई अपनी बातो से। रुसवा हो गये मेरे आंसु मेरी आंखो से॥
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